एक दिन एक प्रोफेसर
अपनेँ कालेज के स्टुडेन्ट्स के सामनेँ हाथ मेँ खाली जार (काँच का बर्तन) लिये
उपस्थित हूए। प्रोफेसर नेँ सभी स्टुडेन्ट्स के सामनेँ उस जार मेँ बड़े-बड़े कंकड़ पत्थर के टुकड़े डाले और वह काँच का
बर्तन उन टुकड़ोँ से भर गया।
प्रोफेसर नेँ सभी
स्टुडेँट्स से पुछा क्या इस बर्तन मेँ और भी कुछ आ सकता है??
सभी का जवाब था-
नहीँ सर, यह पुरा भर गया है!
प्रोफेसर कुछ देर
चुप रहे और उन्होँने छोटे आकार के कंकड़ हाथ मेँ उठाये और जार मेँ डालना शुरू कर
दिये। छोटे कंकड़, बड़े कंकड़ोँ के बीच से होते हूए अपना जगह उस
बर्तन मेँ निर्धारित कर लिये। और बहूत मात्रा मेँ छोटे कंकड़ नेँ अपना स्थान ले
लिया।
फिर से प्रोफेसर नेँ
सभी स्टुडेन्ट्स से पुछा-क्या अब भी इस बर्तन मेँ कुछ और आ सकता है।
ज्यादातर स्टुडेँट्स
का जवाब था- नहीँ, भले ही अब तक हम गलत थे पर अब यकीनन इसमेँ और
कुछ भी चीज आनेँ लायक नहीँ है।
प्रोफेसर बिना कुछ
बोले ही उस बर्तन मेँ रेत डालनेँ लगे और बर्तन को थोड़ा हिलाने के बाद रेत बड़े और
छोटे कंकड़ोँ से होकर अपना जगह बनाते हूए नीचे की तली मेँ बैठ गई.
अब प्रोफेसर नेँ पुरा
उत्साह से पुछा कि अब इसमेँ कुछ
और चीज आनेँ लायक है।
सभी स्टुडेँट्स नेँ
जार का निरीक्षण किया और अब सबनेँ एक स्वर मेँ कहा कि अब पुरा फिक्स है सर इस
बर्तन मेँ और कोई भी चीज आनेँ लायक नही है, यह पुरी
तरह से भरी है।
प्रोफेसर नेँ पानी
का बर्तन उठाया और जार मेँ डालनेँ लगा। पानी बड़े कंकड़, छोटे कंकड़ और रेत से होते हुए बर्तन मेँ समा गई।
सभी स्टुडेँट्स यह
देखकर चकित रह गये।
प्रोफेसर नेँ कहानी
का सार समझाते हूए कहा-
यदि आपकी
प्राथमिकताएँ सही हैँ तो जीवन मेँ घटित आपके कार्य भी उसी के अनुरूप होँगे।
यदि हम इन बड़े
पत्थरोँ से पहले रेत को भर देते तो पत्थर तो बर्तन मेँ आते ही नहीँ या बर्तन मेँ
पहले पानी भर दिया जाता तो कंकड़ पत्थर डालते ही पुरा पानी छलक जाता।
Friends
हमारे जीवन मेँ संतुलन का होना
बहूत जरूरी है इसलिये यदि आपको संतुलन को बिगड़ने नहीँ देना है तो प्राथमिकताएँ तय
कीजिये कि
कौन सा कार्य आपको पहले करना है और कौन सा बाद मेँ।